कुछ ऐसे ध्वस्त होता चला गया ‘धरतीपुत्र’ कहे जाने वाले मुलायम का मजबूत गढ़, कहानी 1996 से 2019 तक की
मुलायम सिंह यादव के गृह जनपद और सपा का गढ़ कहलाने वाली इटावा संसदीय सीट पर लगातार दूसरी बार भाजपा ने ऐतिहासिक मतों से जीत हासिल की। इस चुनाव में सपा अपनी जीत पांचवीं बार दर्ज कराना चाहती थी लेकिन जनता को रास नहीं आया। इस सीट पर सपा से पहले चार बार कांग्रेस पार्टी भी राज कर चुकी है।
वर्ष 1957 के लोकसभा चुनाव में इटावा संसदीय सीट बनी थी। पहली बार अर्जुन सिंह भदौरिया ने जीत हासिल की। 1957 में ही चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रोहनलाल चतुर्वेदी ने सीट कब्जाई। 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस से जीएन दीक्षित ने जीत दर्ज कराई थी। 1971 में अर्जुन सिंह भदौरिया को परास्त कर कांग्रेस के श्रीशंकर तिवारी ने जीत हासिल की थी। 1984 में कांग्रेस के रघुराज सिंह चौधरी ने 184404 मत पाकर धनीराम से जीत हासिल की।
इसके बाद से आज तक कांग्रेस ने इस सीट पर जीत का परचम नहीं फहराया। 1991 में गठबंधन होने पर बसपा से कांशीराम ने 144290 मत पाकर भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को पराजित किया था। यहां बसपा की पहली और अंतिम जीत रही।
1996 में यहां मुलायम राज का पूरी तरह जन्म हो चुका था। 1996 में सपा के रामसिंह शाक्य ने 182015 मत पाकर भाजपा की सुखदा मिश्रा को हराया। यह जीत सपा दोबारा न दोहरा सकी। 1998 के भाजपा प्रत्याशी सुखदा मिश्रा ने 259980 मत पाकर रामसिंह शाक्य को पराजित किया।
1999 के चुनाव में सपा से रघुराज सिंह शाक्य ने 233065 मत प्राप्त किए, जबकि दूसरे स्थान पर शिवप्रसाद यादव रहे। 2004 के चुनाव में सपा से रघुराज सिंह शाक्य ने 367807 मत पाकर भाजपा की सरिता भदौरिया को हराया।
2009 में सपा ने इस सीट पर प्रेमदास कठेरिया को उतारा जिन्होंने 278776 मत पाकर बसपा प्रत्याशी को हराया था। अब बारी 2014 के चुनाव की आई तो भाजपा प्रत्याशी अशोक कुमार दोहरे ने मोदी लहर में 439646 मत पाकर ऐतिहासिक जीत दर्ज कराई।
अशोक दोहरे ने यहां सपा प्रत्याशी कमलेश कठेरिया को हराया था। लगातार दूसरी बार 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज कराई। जिसमें डॉ. रामशंकर कठेरिया ने सभी रिकॉर्डों को तोड़ते हुए 522119 मत पाकर सपा प्रत्याशी को हराया। इटावा संसदीय सीट पर अब तक चार बार कांग्रेस, चार बार सपा ने राज किया। इसके बाद तीसरी बार भाजपा राज करने जा रही है।