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बैकुण्ठपुर पुलिस विभाग ने अपने ही आरक्षक की जमानत खारिज कराने न्यायालय में लगाया आवेदन नहीं मिली सफलता

अधिवक्ता महेश शुक्ला के पैरवी से मिली थी जमानत और इन्हीं के पैरवी से ही पुलिस की जमानत रद्द कराने का आवेदन हुआ खारिज न्यायालय ने पुलिस को डीबीआर का डाटा सुरक्षित रखने का दीया आदेश और कहा डीबीआर के साथ नहीं होनी चाहिए छेड़छाड़ अधिवक्ता महेश शुक्ला के पैरवी से आरक्षक को लूट के मामला में मिली जमानत आरक्षक को मिली थी जमानत,लूट के अपराध में पुलिस ने दर्ज किया था मामला बैंक स्टेटमेंट बना था वरदान, आरक्षक को जमानत मिलते ही पुलिस थाना पटना के थाना प्रभारी किये गए लाइन अटैच कोरिया जिले के उक्त आरक्षक का अपने ही विभाग से चल रही है लड़ाई पुलिस ने घटना दिनांक से लगभग ढाई महीने बाद किया था मामला पंजीबद्ध

राजन सिंह चौहान “संपादक”
कोरिया। कोरिया जिले में पदस्थ आरक्षक सियाराम साहू जिसे पुलिस विभाग द्वारा सस्पेंड कर दिया गया था और उसके बाद एक शिकायत करता है के शिकायत पर गंभीर धाराओं के तहत मामला पंजीबद्ध कर गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था, जिसमें उन्हें जमानत पर रिहा किया गया था जमानत भी अधिवक्ता महेश शुक्ला के पैरवी से मिली थी जिसके बाद पुलिस विभाग के अभियुक्त सियाराम साहू की मिली जमानत याचिका को निरस्त करने पुलिस विभाग की तरफ से लोक अभियोज ने जमानत को रद्द करने अपर सत्र न्यायाधीश बैकुंठपुर जिला कोरिया छत्तीसगढ़ के सामने आवेदन प्रस्तुत किया गया था और यह कहा गया था कि अभी कि अभियुक्त जांच में सहयोग नहीं कर रहा जिसकी सुनवाई के दौरान अभियुक्त के अधिवक्ता महेश शुक्ला ने काफी तथ्यों के साथ पैरवी की जिसके बाद पुलिस विभाग के द्वारा जमानत रद्द करने लगाई आवेदन को खारिज कर दिया और पुलिस को जप्त डीबीआर के डाटा को सुरक्षित रखने व डीबीआर के साथ कोई छेड़छाड़ ना करने का भी आदेश दिया। क्यों की सीसीटीवी डीवीआर हार्डडिस्क में होने से पुलिस के द्वारा बिना सीआरपीसी 91 का नोटिस दिये बिना ही सीसीटीवी डीवीआर 02 टीबी हार्डडिस्क को जबरन जत कर ले जाया गया। यह समस्त साक्ष्य सीसीटीवी डीवीआर हार्डडिस्क में होने से थाना पटना की पुलिस इसे विलोपित करना चाहती है हटाना चाहती है। किसी भी आरोपी से किसी भी जांच एजेंसी एवं पुलिस के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का पासवर्ड मांगना संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है, दिल्ली कोर्ट ने महेश कुमार शर्मा बनाम सीबीआई के मामले में यह फैसला दिया है।
ज्ञात हो की कुछ महीने पहले कोरिया पुलिस के द्वारा अपने ही विभाग के एक आरक्षक को लूट के मामले में जेल भेजा था जिसकी पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता महेश शुक्ला के द्वारा किया गया जिस पर आरक्षक को जमानत पर जेल से रिहा किया गया। कोरिया जिले के पुलिस थाना पटना में 15 सितंबर को जिले के ही एक आरक्षक सियाराम साहू के विरुद्ध लूट का मामला दर्ज किया गया था और जिसमे आरक्षक की गिरफ्तारी कर उसे जेल भेज दिया गया था मामले में आरक्षक पर आरोप लगाया गया था कि उसने ऑनलाइन दो मोबाइल मंगवाए थे और मोबाइल डिलीवरी लेकर भी वह मोबाइल की कीमत नहीं चुका रहा था जिसपर यह कार्यवाही की गई थी। मामले में आरक्षक की तरफ से जिला एवम सत्र न्यायाधीश जिला कोरिया के समक्ष अधिवक्ता द्वारा जमानत याचिका लगाई गई जिसमें आरक्षक को जमानत मिल गई। आरक्षक ने मोबाइल की डिलीवरी लेते समय ऑनलाइन पेमेंट करने का प्रोसेस किया था और पेमेंट फेल हो गया जिसका स्टेटमेंट उसकी तरफ से न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया गया जो जमानत में कारगर सबित हुआ। सियाराम के अधिवक्ता महेश शुक्ला की अच्छी पैरवी पर माननीय न्यायाधीश ने जमानत आदेश जारी किया, जिसके बाद सियाराम साहू को बैकुंठपुर जेल से 21 सितंबर को रिहा किया गया। पूरे मामले में आरक्षक को जमानत मिलते ही इसकी गाज थाना प्रभारी पुलिस थाना पटना पर गिरी है और उन्हें तत्काल लाइन हाजिर कर दिया गया है। अब पुलिस थाना पटना के प्रभारी संदीप सिंह होंगे और सौरव द्विवेदी की थाने से छुट्टी कर दी गई है।
पासवर्ड नहीं देने को लेकर सहयोग ना करने के आरोप में जमानत रद्द करने की हुई थी माँग
थाना पटना के द्वारा दिनांक 12/11/2022 को दिये गये नोटिस में सियाराम साहु ने यह लिखा था कि इस संबंध में आपको दिल्ली हाईकोर्ट के प्रकरण क्रमांक सीबीआई-31/2021 जो कि महेश कुमार शर्मा बनाम सीबीआई के प्रकरण पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा हैकी कोई भी जांच एजेंसी एवं पुलिस आरोपी को किसी भी डिवाइस अथवा अकाउंट का पासवर्ड बताने के लिए बाध्य नहीं कर सकती, पुलिस की इस तरह की कार्यवाही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है। आरोपी को 161(2) के तहत खुद को चुप्पी बनाएं रखने का अधिकार है इसी के साथ सियाराम साहू ने यह भी लिखा की अधिवक्ता से संपर्क नहीं हो पाने के कारण आगे की कार्यवाही अधिवक्ता से बात करके की जायेगी थाना पटना के द्वारा दोबारा नोटिस भेजी जा सकती है जिस पर प्रतिशोध की भावना से थाना पटना नें जमानत रद्द कराने का आवेदन प्रस्तुत कर दिया, यह आवेदन 17/01/2023 आवेदक/राज्य की ओर से अरविन्द सिंह, अति लोक अभियोजक ने लगया था। प्रकरण राज्य की ओर से प्रस्तुत आवेदन अंतर्गत धारा 439 (2) दं. प्र.सं. पर आदेश हेतु नियत था। राज्य की ओर से आवेदन एवं तर्क है कि थाना पटना के अपराध क. 454 / 2022 धारा 392 भा.द.स. में अभियुक्त सियाराम साहू को दिनांक 20.09.2022 के आदेश के अनुसार जमानत पर रिहा किया गया है। अभियुक्त दिनांक 15.09.2022 से एक नग जिओनीन एक्स कंपनी का मोबाइल तथा एक नग डीवीआर घटना दिनांक का फुटेज प्राप्त करने हेतु जप्त किया गया है। जप्त डीवीआर घटना दिनांक का फुटेज प्राप्त करने हेतु सायबर सेल को भेजा गया है। वह फुटेज बिना पासवर्ड के बिना नहीं खुल रहा है। अभियुक्त द्वारा पासवर्ड नहीं बताया जा रहा है। उसे नोटिस दी गयी थी। वह अपने अधिवक्ता के संपर्क के बिना जानकारी देने से इंकार कर रहा है। अतः अभियुक्त सियाराम साहू की जमानत निरस्त किये जाने का निवेदन किया गया है।
उक्त डाटा को सुरक्षित कराया जाना आवश्यक है,जिससे पुलिस द्वारा डाटा डिलिट न किया जा सके
अनावेदक के अधिवक्ता महेश शुक्ला की ओर से आवेदन के जवाब एवं तर्क में बताया गया है कि प्रकरण में आवेदक पक्ष द्वारा गलत जानकारी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गयी है। अभियुक्त जब नोटिस दिया गया तो उसने कहा था कि पासवर्ड बता दूँगा तथा अपने अधिवक्ता से संपर्क करने के पश्चात् बता पाउंगा। अभियुक्त जितने भी आवेदन थाना प्रभारी भेजा जाता है, वह लेने से इंकार कर देती है। डीवीआर में अभियुक्त के बेगुनाही का सबूत मौजूद है। थाना पटना द्वारा उसके विरूद्ध अवैधानिक कार्यवाही की गयी है। थाना पटना द्वारा जो डीवीआर जप्त किया गया है, उक्त डाटा को सुरक्षित कराया जाना आवश्यक है, जिससे पुलिस द्वारा डाटा डिलिट न किया जा सके। उसने यह भी तर्क किया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के अनुसार अभियुक्त को स्वयं की गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उसने इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का न्यायदृष्टांत सेल्वी विरूद्ध कर्नाटक राज्य (2010) 7 एस.सी.सी. 263 प्रस्तुत किया गया है। अनावेदक द्वारा एक आवेदन के साथ अपने डी.वी.आर. का पासवर्ड बंद लिफाफा में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है तथा डी.वी.आर का पासवर्ड पुलिस को प्रदान किये जाने में कोई आपçा नहीं होना व्यक्त किया है। साथ ही उसने आवेदन प्रस्तुत किया है कि पुलिस हार्डडिक्स में सेव डाटा को डिलिट कर सकते हैं, उक्त डाटा अनावेदक के बचाव का महत्वपूर्ण साक्ष्य है। अतः दिनांक 07.09.2022 से 15.09.2022 तक शाम 5.00 बजे तक का डाटा पुलिस को सुरक्षित रखे जाने निर्देश दिये जाने का निवेदन किया है।
राज्य की ओर से प्रस्तुत आवेदन अंतर्गत धारा 439 (2) दं.प्र. सं. स्वीकार योग्य नहीं एडीजे कोर्ट
प्रकरण का अवलोकन किया गया की ओर से अभियुक्त को जमानत राज्य की ओर न्यायालय द्वारा जमानत प्रदान की गयी है ऐसे कोई जमानत की प्रति पेश नहीं की गयी है परन्तु केस डायरी के अवलोकन से दर्शित होता है कि जमानत आवेदन क्रमांक 213 / 2022 सियाराम साहू विरूद्ध छ.ग. राज्य में पारित आदेश दिनांक 19.09.2022 को इस न्यायालय द्वारा अभियुक्त को थाना पटना के अपराध क. 1554 / 2022 में जमानत का लाभ धारा 439 दं.प्र.सं. के प्रावधानों के अनुसार दिया गया है। माननीय पटना उच्च न्यायालय के न्यायदृष्टांत सुरेन्द्र सिंह विरुद्ध स्टेट आफ बिहार 1989 एस.सी. सी. आनलाईन पटना 206 में प्रतिपादित सिद्धांत के अनुसार धारा 439 (2) दंप्र.सं. के अंतर्गत जमानत निरस्त किये जाने के आधार बताये गये हैं, जिसके अनुसार निम्न आधारों पर जमानत निरस्त की जा सकती है, जब अन्वेषण या विचारण के दौरान अभियुक्त साक्ष्य में छेड़छाड़ कर रहा हो। जब जमानत पर छूटा हुआ व्यक्ति जमानत के दौरान सामान्य जघन्य अपराध कारित करता है। जब अभियुक्त गैरहाजिर रहे और उस कारण से प्रकरण में दिलंब हो। जब अभियुक्त द्वारा किये गये अपराध से समाज में विधि और व्यवस्था की स्थिति खराब हो और शांतिपूर्वक रहने वाले लोगों के लिए अभियुक्त खतरा बन गया हो। जब उच्च न्यायालय का यह निष्कर्ष हो कि जमानत मंजूर करने वाले निचले न्यायालय ने अपने शक्ति का गलत प्रयोग किया है। उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय का यह निष्कर्ष हो कि अभियुक्त ने जमानत की सुविधा का दुरूपयोग किया है। यदि स्वयं अभियुक्त की जान खतरे में हो। इस प्रकरण में उपरोक्त परिस्थितियों में से कोई भी परिस्थिति निर्मित हुई हो ऐसा कोई भी तथ्य अभियोजन द्वारा दर्शित नहीं किया गया है। अनावेदक डीवीआर का पासवर्ड भी बताने को तैयार है। उसने डी.वी.आर. का पासवर्ड बंद लिफाफे में न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया है। परन्तु केवल उसे यह संदेह है कि पुलिस डी.वी.आर. के डाटा को नष्ट कर सकती है जो कि उसके बचाव का महत्वपूर्ण साक्ष्य है। उसका निवेदन मात्र इतना है कि दिनांक 07.09.2022 से 15.09.2022 तक शाम 5.00 बजे तक डी.वी.आर. में जो डाटा है, उसे सुरक्षित रखा जावे। अनावेदक के उक्त निवेदन को अनुचित नहीं कहा जा सकता। प्रकरण में ऐसा कोई भी तथ्य नहीं है कि अनावेदक को दी गयी जमानत को निरस्त किया जाये। अत एव राज्य की ओर से प्रस्तुत आवेदन अंतर्गत धारा 439 (2) दं.प्र. सं. स्वीकार योग्य नहीं होने से निरस्त किया जाता है।
पुलिस ने पहली बार पुलिसकर्मी पर अपराध दर्ज करने में दिखाई फुर्ती
वैसे तो पुलिस विभाग में पुलिसकर्मियों की शिकायत पर इतनी जल्दी कार्यवाही नहीं होती या यह कहें कार्यवाही ही नहीं होती वरना जिले में ही कई पुलिसकर्मियों के विरुद्ध की गई कई शिकायतों पर जो वर्षों से हुईं शिकायतें हैं कोई कार्यवाही आज तक जिले में नहीं हुई है और मामला जैसा का तैसा पड़ा हुआ है और जांच के नाम पर पुलिस पुलिसकर्मियों को बचाते चले आ रही है लेकिन इस मामले में कोरिया जिले की पुलिस ने फुर्ती दिखाई और तत्काल गिरफ्तारी कर उक्त आरक्षक को जेल भेज दिया वह भी लूट का मामला दर्ज कर न कोई जांच हुई और न कोई समय लिया गया। वैसे चर्चा यह भी है कि पुलिस विभाग की पोल खोलने में मुखर रहने वाले उक्त आरक्षक पर इसलिए भी पटना पुलिस ने त्वरित कार्यवाही की क्योंकि वह पटना पुलिस थाने के प्रभारी की कार्यप्रणालियों को लेकर भी मुखर रहता था और सार्वजनिक रूप से उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखा करता था,यहां तक कि उसने एक मामले में खुद पर अपराध दर्ज कर उसे गलत तरीके से फंसाने का आरोप भी वह प्रभारी पर लगा चुका था।
एडीजे कोर्ट के न्यायधीश ने थाना पटना को आदेश दिया की जप्त शुदा डीवीआर का डाटा सुरक्षित रखे तथा उक्त डीवीआर में किसी भी प्रकार का छेड़छाड़ न हो।
साथ ही एडीजे कोर्ट के विद्वान न्यायधीश के द्वारा थाना पटना की पुलिस को यह आदेश दिया है की थाना प्रभारी पटना यह सुनिश्चित करें कि जप्त शुदा डी.वी.आर. में दिनांक 07.09.2022 से 15.09.2022 के शाम तक का डाटा सुरक्षित रखा जावे तथा उक्त डी.वी.आर. में किसी भी प्रकार का कोई छेड़छाड़ न हो। सियाराम साहु के अनुसार उपरोक्त प्रकरण में सच्चाई यह है कि उक्त डीवीआर हार्डडिस्क में अभियुक्त के बेगुनाही का समस्त सबूत मौजूद है और थाना पटना की पुलिस के द्वारा अनुमानित लगभग 150 की सख्या में आरक्षक पुलिसकर्मी एवं अनुमानित लगभग 40 जिसमें उपपुलिस अधीक्षक मुख्यालय, टीआई, उपनिरीक्षक, सहायक उपनिरीक्षक, प्रधान आरक्षक शामिल है एवं अनुमानित लगभग 16 फोर व्हीलर गाडि़यों में प्रार्थी के घर में दिनांक 15/09/2022 को रेड की कार्यवाही की गई।

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